Saturday, May 30, 2009

मुसाफिर.

मुसाफिर का सवाल है,
मंजिल कब मय्यसर होगी?
पर सवाल करने का ,
हक़ तुझे नही,ऐ मुसाफिर।
चलते-चलते बीतेगी जिंदगानी,
या फ़िर मंजिल तेरे नज़र होगी।
तू हौसला अपना बुलंद रखना,
सोच समझ कर राह पर कदम धरना
झुकेगी एक दिन खुदाई ,
इस रात की भी एक सहर होगी।
कोई फूलों को चूम कर इठला रहा है,
कोई कांटे चुभे ज़ख्म सहला रहा है।
पोंछ के अश्क तू देख,
कल तेरी किस्मत आज से बेहतर होगी.

1 comment:

  1. तू हौसला अपना बुलंद रखना,
    सोच समझ कर राह पर कदम धरना
    झुकेगी एक दिन खुदाई ,
    इस रात की भी एक सहर होगी।
    Beshaq bahin ji... Aisa hi hoga.. aap bhi manjil-e-maqsood ki aur badti rahe... Allah aapko bhi apna mukaam ataa karega..
    Aameen. likhate rahiye...

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