मै प्रभंजन में भी,ले खड़ी हु एक दिया,
विश्वास की बाती है,
स्नेह सिक्त है यह छोटा सा दिया,
घोर अंधेरे मे भी बिखर रहा है,
इसका मद्धम उजास।
इस पथपर भी आएगा पथिक कोई,
ऐसी है मन मे आस ,
आज गूंजता आर्तनाद है,
सुनाई पड़ती है मानवता की चीत्कार।
फ़िर भी आशा की लौ कह रही ,
सुनी जायेगी हमारी पुकार.
Wednesday, November 4, 2009
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bahut sundar aur aashaawadi kavitaa hai. badhaai.
ReplyDeleteanandkrishan, jabalpur
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