ना जाने किस रोशनी की तलाश है,
जीवन के अंधेरे रास्तों में भटक कर ,
खो चुके जो अपना वजूद,
उन्हें फिर अपनी तलाश है।
मै नही,मेरा नही,ये जग है झूठा फ़साना,
कौन दोहरा रहा है इसे,
किसे नई कहानी की तलाश है।
बनते बिगड़ते सपनों के साए,
उनमे बिखरती गई जवानी,
सपनों के इस खोये जाल में
एक नई जिंदगानी की तलाश है,
ना जाने किस रोशनी की तलाश है....
Wednesday, February 18, 2009
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bahut pyara likha hai aapne ...sachmuch
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