Sunday, February 1, 2009

basant

शीत की शिथिलता का हुआ अंत,
नव चेतना की अलख जगाता आया बसंत।
नव-निर्माण की आशाएं ,बदल रही प्राचीन परिभाषाएं ,
जाग रही हैं मन में अभिनव अभिलाषाएं।
भाग्य भास्कर उदित हो कर ,
करेगा राष्ट्र-नभ को ओजवंत,
नव चेतना की अलख जगाता आया बसंत।
सृजन है शिव-शक्ति का प्रणय राग,
समाहित है इसमे सरस्वती का विराग।
ज्ञान सम्मत सृष्टि ही ,
है अनादी-है अनंत।
नव चेतना की अलख जगाता आया बसंत.

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