एक अनकही कहानी,
कह रही आँखों की जुबानी ।
वो बिटिया एक गरीब किसान की ,
सुंदर सलोनी सुहानी।
उसकी आँखों में नही है सपने,
पिता की मजबूरी की कसक है,
कैसी होगी ज़िन्दगी उसकी ,
तलाशती निगाहों की भरी पलक है।
तन पे लज्जा वस्त्र नही पूरा,
छीन गया है दाना-पानी ।
अक्षरों का ज्ञान उसे नही है,
प्रतिभा का भान उसे नही है।
उसे तो बस बेलनी है रोटियां।
निज गरिमा का अभिमान उसे नही है।
क्या कोई सुन सकेगा,
उसकी ये अनकही कहानी,
क्या कोई उसे दे सकेगा ,
सपने आसमानी।
ये बिटिया ही सहचरी बनती है,
माँ बन पुरूष का पालन करती है।
अपनी हर भूमिका में यह बिटिया,
खरी उतरती है।
क्या कभी बदलेगी ,
इसकी ये अनकही कहानी,
ये आँखों की वीरानी ...
Saturday, December 5, 2009
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