पीपल की एक डाली पर , था चिडियों का बसेरा,
एक चोटी सी चिडिया के परों पर ,जा बैठा मन मेरा।
वो उडी ऊँचे गगन में , हवा से उसकी मित्रता थी,
मैं भी मुक्ताकाश मई निकल पड़ी,
न सोचा,पात्रता थी।
वन,उपवन,तीर,तडाग,
सब छोड़ उड़्रचले थे हम ।
लगता था सबसे ऊँचे है,
सुखद अनुभव था अनुपम।
फ़िर अचानक एक तीर ने काट दिए पर चिडिया के,
धरती पर आ गिरी वो,
टूट गए घरोंदे गुडिया के।
पर अंत इति नही ,नव सृजन का आरम्भ है।
पतन से उत्थान होता,मिटता केवल दंभ है।
सबके साथ स्वयं को जोडो,
सबके सुख दुःख स्वीकारो,
सबको मान कर अपना फ़िर अपनों को पुकारो।
सब में ख़ुद को भूल जाना तभी प्रियतम को पाओगे,
नही ऊँचे आकाश का वो वासी,वहां जाओगे तो पछताओगे।
जड़ चेतन सबमे वो बसता है,
वो ही मीत सयाना है।
वो मानव है सच्चा,जो उसका दीवाना है।
स्वाति.
था
Wednesday, December 31, 2008
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